चातुर्मास के तहत ज्ञान गंगा महोत्सव में मुनि 108 प्रणीत सागर महाराज ने उपदेश देते हुए बताया कि जो श्रमण (दिगम्बर साधु) परम्परा जो प्रायः विलुप्त हो चुकी थी उसे वर्तमान में पुनः आचार्य आदिसागर, आचार्य शांतिसागर जैसे महान आचार्यों ने प्रारम्भ किया।
सभा को सम्बोधित करते हुए बताया कि वर्तमान में दिगम्बर जैन साधु हर कोई नही बन सकता एवं जो है श्रमण संस्कृति के उन्नायक है इन्हें सम्भालकर रखना श्रावक का महत्वपूर्ण कर्तव्य है। मुनि ने कहा कि जब गृहस्थ माता-पिता बन जाये तब व्यवहार, कार्यकुशलता, जीवन शैली में परिवर्तन अवश्य कर लेना चाहिए, क्योंकि आपकि सन्तान जो होती है वो सबसे पहले अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर ही चलते है। मीडिया प्रभारी विकास जैन टोरडी ने बताया कि 9 जुलाई को प्रातः8.30 बजे चातुर्मास स्थापना की क्रियाएं मुनि संघ द्वारा की जाएगी जिसमें विश्वकल्याण की भावना भरते हुए विशेष मन्त्रों की जाप की जाएगी एवं मुनिसंघ के चातुर्मास की स्थापना पार्श्वनाथ धर्मशाला में की जाएगी जिसमें सकल जैन समाज उपस्थित रहेगा।
चातुर्मास ज्ञान गंगा महोत्सव: मुनि प्रणीत सागर ने श्रमण सेवा एवं माता-पिता के कर्तव्य का कराया बोध

